उल्लू मियाँ शेरजंग गर्ग
उल्लू मियाँ
शेरजंग गर्गउल्लू मियाँ, उल्लू मियाँ,
क्यों बन्द कर दीं खिड़कियाँ?
कितनी मधुर है रौशनी,
है धूप सोने-सी छनी।
हर ओर जीवन दीखता,
पर तू न हँसना सीखता।
खाता हमेशा झिड़कियाँ,
उल्लू मियाँ, उल्लू मियाँ,
क्यों बन्द कर दीं खिड़कियाँ?