होने लगा है मुझ पे जवानी का असर प्रदीप
होने लगा है मुझ पे जवानी का असर
प्रदीप | अद्भुत रस | आधुनिक कालहोने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर
झुकी जाए नज़र
देखो छलक पड़ी है मेरे रूप की गागर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र
इक ऐसी डगर पर आई मेरी उमर
दमकी है मेरी दुनिया झमकी है झांझर
दुल्हन की तरह आज मैं बन ठन चली किधर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र
मुस्का रहा है मन शरमा रहे नयन
पलकों में झूमने लगे प्यार के सपन
चुपके से मेरे दिल में कोई कर रहा है घर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र
अपना है अब ये हाल लटपट हुई है चाल
मैं ऐसे डोलूं जैसे डोले पवन में डाल
पड़ने लगे हैं पाँव मेरे इधर उधर
झुकी जाए नज़र हो झुकी जाए नज़र
होने लगा है मुझ पे जवानी का अब असर
झुकी जाए नज़र झुकी जाए नज़र
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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