कल और आज गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
कल और आज
गजानन माधव 'मुक्तिबोध' | अद्भुत रस | आधुनिक कालअभी कल तक गालियाँ
देते थे तुम्हें
हताश खेतिहर,
अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गौरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
दुबके पड़े थे मेंढक,
उदास बदतंग था आसमान !
और आज
ऊपर ही ऊपर तन गये हैं
तुम्हारे तंबू,
और आज
छमका रही है पावस रानी
बूंदा बूंदियों की अपनी पायल,
और आज
चालू हो गई है
झींगुरों की शहनाई अविराम,
और आज
जोर से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,
और आज
विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेट कर अपने लाव-लश्कर ।
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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