जब मैं तुम्हारी दया अंगीकार करता हूँ रघुवीर सहाय
जब मैं तुम्हारी दया अंगीकार करता हूँ
रघुवीर सहाय | शृंगार रस | आधुनिक कालजब मैं तुम्हारी दया अंगीकार करता हूँ
किस तरह मन इतना अकेला हो जाता है?
सारे संसार की मेरी वह चेतना
निश्चय ही तुम में लीन हो जाती होगी ।
तुम उस का क्या करती हो मेरी लाडली—
—अपनी व्यथा के संकोच से मुक्त होकर
जब मैं तुम्हे प्यार करता हूँ ।
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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