रूप तुम्हारा सोम ठाकुर
रूप तुम्हारा
सोम ठाकुर | शृंगार रस | आधुनिक कालरूप तुम्हारा मन में कस्तूरी बो गया,
मन जाने क्या से क्या हो गया !
लोहे से गुथी हुई जंग लगी साँसों में
फिर आदिम जंगल उग आये,
माथे से टकराकर उछली यह चाँदनी
धमनियों - शिराओं में डूबे - उतराए,
गाँठ -पुरे जालों से
उड़कर फिर मनपांखी
पहला तिनका
नंगी शांख पर सॅजो गया .
मन जाने क्या से क्या हो गया.
एक पर्त झन्नाहट की फैली
अंग अंग चिपक गयी नज़रे ,
एक पोर भर चेहरा छूकर यह तर्जनी
ले आई आमकद खबरें ,
तकिये पर टांक कर गुलाबों के संस्मरण
चाँदनी - बिंधा बादल
कंधे पर सो गया .
मन जाने क्या से क्या हो गया
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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