हंस माला चल नरेन्द्र शर्मा

हंस माला चल

नरेन्द्र शर्मा | शांत रस | आधुनिक काल

हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 

शून्य है तेरे लिए मधुमास के नभ की डगर 
हिम तले जो खो गयी थीं, शीत के डर सो गयी थी 
फिर जगी होगी नये अनुराग को लेकर लहर 
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 

बहुत दिन लोहित रहा नभ, बहुत दिन थी अवनि हतप्रभ 
शुभ्र-पंखों की छटा भी देख लें अब नारि-नर 
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 

पक्ष अँधियारा जगत का, जब मनुज अघ में निरत था 
हो चुका निःशेष, फैला फिर गगन में शुक्ल पर 
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 

विविधता के सत विमर्षों में उत्पछता रहा वर्षों 
पर थका यह विश्व नव निष्कर्ष में जाये निखर 
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 

इन्द्र-धनु नभ-बीच खिल कर, शुभ्र हो सत-रंग मिलकर 
गगन में छा जाय विद्युज्ज्योति के उद्दाम शर 
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर 

शान्ति की सितपंख भाषा, बन जगत की नयी आशा 
उड निराशा के गगन में, हंसमाला, तू निडर 
हंस माला चल, बुलाता है तुझे फिर मानसर

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