हमने नाव सिन्धु में छोड़ी गुलाब खंडेलवाल
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
गुलाब खंडेलवाल | वीर रस | आधुनिक काल
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
तट पर ही चक्कर देना क्या! लौ अकूल से जोड़ी
साथी जो इस पार रहे हैं
वहीं, वहीं सिर मार रहे हैं
हम तो उसे सँवार रहे हैं
आयु बची जो थोड़ी
सीमित जब असीम बन जाता
तट का खेल न उसे सुहाता
हमने उनसे जोड़ा नाता
परिधि जिन्होंने तोड़ी
हम विलीन हों भले अतल में
मिल न सकें अमरों के दल में
पर क्या कम यदि अंतिम पल में
उसने दृष्टि न मोड़ी!
हमने नाव सिन्धु में छोड़ी
तट पर ही चक्कर देना क्या! लौ अकूल से जोड़ी
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परिचय
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