कठोर हुई जिंदगी सोम ठाकुर
कठोर हुई जिंदगी
सोम ठाकुर | अद्भुत रस | आधुनिक कालहमने तो जन्म से पहाड़ जिए
और भी कठोर हुई ज़िंदगी
दृष्टि खंड -खंड टूटने लगी
कुहरे कि भोर हुई ज़िंदगी
ठोस घुटन आसपास छा गई
कड़वाहट नज़रों तक आ गई
तेज़ाबी सिंधु में खटास की
झागिया हिलोर हुई ज़िंदगी
चीख -कराहों में डूबे नगर
ले आए अपराधों कि लहर
दिन - पर- दिन मन ही मैले हुए
क्या नई -निकोर हुई ज़िंदगी
नाखूनों ने नंगे तन छुए
दाँत और ज़्यादा पैने हुए
पिछड़े हुए हैं खूनी भेड़िए
खुद आदम- खोर हुई ज़िंदगी
जो कहा समय ने सहना पड़ा
सूरज को जुगनू रहना पड़ा
गाली पर गाली देती गई
कैसी मुँहज़ोर हुई ज़िंदगी
सुकराती आग नहीं प्यास में
रह गया 'निराला' इतिहास में
चाँदी को संटी खाती गई
साहू का ढोर हुई ज़िंदगी
कानो में पिघलता सीसा भरा
क्या अन्धेपन का झरना झरा
मेघदूत-शाकुन्तल चुप हुए
यंत्रो का शोर हुई ज़िंदगी
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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