कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई। कुम्भनदास

कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई।

कुम्भनदास | अद्भुत रस | भक्तिकाल

कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई।

सुंदर नंद कुँवर के बिछुरे, निस दिन नींद न परई॥

बहु विधि मिलन प्रान प्यारे की, एक निमिष न बिसरई।

वे गुन समुझि समुझि चित नैननि नीर निरंतर ढरई॥

कछु न सुहाय तलाबेली मनु, बिरह अनल तन जरई।

'कुंभनदास लाल गिरधन बिनु, समाधान को करई।

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