कोमल मन
ना थामो इन नन्हें क़दमों को, ना जकड़ो बेड़ियों में इन्हें
ये पावन मन, उड़ते पंछी से, ना कैद करो पिंजरों में इन्हें
नन्हा सा मन, ये है निर्बल, उसे बाँधोगे तो बन्ध जायेगा
ज्यादा जकड़ा इस बँधन को, तो बँधन जकड़न बन जायेगा
याद रखो कोमल है मन, जकड़न के साँचों में ढल जायेगा
इन साँचों में ढलते-ढलते, बँधन का वो आदी हो जायेगा
फिर गर तुम खोल भी दो बँधन, और मुक्त करो उसकी जकड़न
साँचें जकड़न के मन पर हैं, बिन बँधन भी वो बन्ध जायेगा
…………………..…….. बिन बँधन भी वो बन्ध जायेगा
पँछी जो सकता था जीत जहाँ, बस पिंजरे में वो रह जायेगा
.....................................बस पिंजरे में वो रह जायेगा