मुझे तुझमे इक जमना नज़र आया
सर्द सड़क थी, बे-मौसम करावाँ नज़र आया...
स्याह रात में दूर कहीं , इक चरागाँ नज़र आया...
शायद बाम-ए-फलक से मेहताब उतरे थे,
एहदों बाद नूर-ए-जश्न का नज़ारा नज़र आया..!!
गैरों को आफताब, बेग़ैरों को मेहताब, मुझे तुझमे इक जमाना नज़र आया...
बिगड़ते साहिल के दरमियाँ, एक खज़ाना नज़र आया...
दश्त-ए-साकी पैमाना लेके उतरे थे,
बाम-ए-मिना संग लबों की मशरूफियात का नज़ारा नज़र आया..!!
करीब से देखे तो फ़रिश्ता हो, दूर से सितारा नज़र आया...
सरमे के बाद, जश्न-ए-बहारा नज़र आया...
चले आओ अब, "मस्तान" चश्म-बराह हैं,
कभी साक़ी कभी शायर, तो कभी खुद में बंजारा नज़र आया...
मुझे तुझमे इक जमाना नज़र आया...!!