स्वच्छता में सहयोग ही जीवन का सही उपयोग है

स्ट्रोंग दादू की स्ट्रोंग सीख – अपनाओ स्वच्छता की रीत

विजय कृष्ण सारथी हिमाचल प्रदेश के एक सुन्दर गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे | वह खुद एक शिक्षक होने के साथ-साथ गाँव के हर सुख-दुःख में एवं समाज सेवा से जुड़े रहते थे | वह बिना किसी जाति-धर्म की भिन्नता के लोगो की मदद के लिये हमेशा तत्पर रहते थे | मानवता की सेवा को ही वे अपना सबसे बड़ा कर्म और धर्म समझते थे और पुरे जीवन में उसी सूत्र में दृढ विश्वास करते थे | कई कट्टरपंथी लोग उनका विरोध और उपहास करते थे पर विजयकृष्ण सारथी उनकी बातो पर ध्यान न देकर अपने उद्धेश्य में लगे रहते थे | अच्छा-खासा सुखी-समृद्ध परिवार थ उनका | खुद, उनका परिवार और परिवार की महिलाये आदि सभी शिक्षित थे | उनके एक पुत्र एवं एक पुत्री थी | पुत्री व्यवसायिक प्रबंधन में मास्टर डिग्री करके अपने पति के साथ विदेश में काम करती थी | पुत्र इंजिनीरिंग करके बंगलोर में एक अच्छे सरकारी विभाग में काम कर रहा था |

शारीरिक दृष्टी से विजय कृष्ण एकदम चुस्त-दुरस्त थे | वे नियमित रुप से योग एवं ध्यान आदि करते थे और वे अपने कई साथियों और बच्चो को योग आदि का प्रशिक्षण भी देते थे | उनका मानना था की व्यक्ति अगर चुस्त-दुरस्त है तो वो अपने जीवन के अंतिम काल तक स्वयं अच्छे से कर सकता है उसे किसी अन्य पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा |

हालाँकि विजय कृष्ण को कभी हिमाचल के बाहर जाने का मौका कभी मिला नहीं था पर हिमाचल में रह कर उन्हें जीवन के सारे सदगुणों का भान था | दूर दराज से आने वाले पर्यटकों से उन्हें जीवन कई नए नए अनुभव हो जाते थे और जीवन को किस तरह से अच्छे से जिया जाय इसका उन्हें अद्भुत आभास था | उन्हें जीवन के सभी विषयों का अच्छ-खासा ज्ञान था उन पर पकड़ थी इसलिए देशी-विदेशी पर्यटको को उनका अच्छा गाइडेंस मिल जाता था | उन्हें कई पर्यटकों ने विदेश यात्रा का आमंत्रण भी दिया था पर वे अपनी व्यस्तताओ के कारण कहीं जा नहीं पाए थे | पर हाँ हिमाचल के सभी पर्यटक स्थलों और वहां के सुन्दर सौम्य प्रकृति और पहाड़ी इलाको से वो भली-भांति परिचित थे | ऊँची-ऊँची पहाडियों को तो वे पल-भर में लाँघ जाते थे | इसी कारण हिमाचल के लोग उन्हें एक सफल पर्वतारोही मानते थे |

वह एक सफाई एवं स्वच्छता पसंद इन्सान थे तथा वे हर देशी-विदेशी पर्यटकों और सैलानियों से हमेशा विनम्र अनुरोध करते थे की वे हिमाचल के इस प्रकृति प्रिय वातावरण को कृपया कचरे, प्लास्टिक, खाद्यसामग्री एवं कांच की बोतले आदि इधर-उधर फेंक कर गन्दा न करे | वे कहते थे किस हिमालय की गोद में बसे इस सुंदर हिमाचल को साफ सुथरा और सुंदर रखने में आप सभी सहयोग दे और कचरा निश्चित जगह एवं कचारापत्रो में ही डाले | इससे न केवल गंदगी नहीं हो बल्कि लोगो का स्वस्थ्य भी ख़राब नहीं होगा | उनके विचारो से कई लोग प्रेरणा लेते थे और स्वच्छता बनाये रखने में अपने भरपूर सहयोग देते थे |

एक शिक्षक के रूप में विजय कृष्ण सारथी की बहुत उत्कृष्ट एवं शानदार छवि थी | उनकी अध्यापनशैली और बेहतर परिणामो के फलस्वरूप उन्हें हिमाचल के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री से शिक्षा एवं सामाजिक विकास के क्षेत्र में कई पुरस्कार एवं अवार्ड मिल चुके थे | वे एक सच्च एवं निर्भीक सामाजिक व्यक्ति एक रुप में जाने जाते थे और समाज में व्याप्त पाखण्ड और कुरीतियों के विरोध में सदैव अपनी आवाज उठाते रहते थे | उनका सभी धर्मो और जातियों के लोगो के यहाँ आना-जाना था और उनका सबके साथ सम्मान पूर्वक व्यव्हार था | उनके इस व्यवहार से दुसरे लोग जलते थे पर उन्हें इससे ख़ुशी मिलती थी | उनका मानना था की मानव-मानव के बीच जातीय और सामाजिक भिन्नता होगी तो हमारा देश और समाज आगे कैसे बढ़ेगा और समाज में सामाजिक एकरूपता कैसे आ पायेगी |

विजय कृष्ण सारथी के इन पुनीत एवं पावन विचारो एवं कार्यो में उनकी पत्नी निर्मला का हमेशा सहयोग बना रहता था | निर्मला जी भी बहुत नेक एवं खुले विचारो वाली महिला थी | उन्होंने पति की हर अच्छी बात का भरपूर सहयोग किया और मानवीय सेवा में अपना योगदान दिया | इसलिए विजय कृष्ण सारथी और निर्मला जी की इस जोड़ी को हिमाचल में निर्मल-विजय के नाम से जाना जाता है | वे दोनों अपने वेतन के साथ-साथ खेती-बड़ी से जो आमदनी होती थी उसे पूरी योजनाबद्ध तरीके से खर्च करते थे और आवश्यकता होने पर जरूरतमंद लोगो की आर्थिक मदद भी करते थे साथ ही वे राजकीय स्कूलों में दरी-पट्टी, टेबल-कुर्सी एवं पाठ्य आदि उपलब्ध कराने में सहायता करते थे |

चूँकि वो अपने गाँव में ही मस्त रहते थे पर वर्ष 2010 अपने पुत्र-पुत्रवधू और प्रपोत्र द्वारा बहुत आग्रह करने के कारण कुछ दिनों के लिए उन्होंने बैंगलोर जाने कर निश्चय किया | वह अपने सभी कामों से समय निकाल कर सपत्निक बैंगलोर गए थे | वहां वे अपने पुत्र-पुत्रवधू एवं प्रपोत्र के साथ मजे से रह रहे थे | आराम से घूमना-फिरना हो रहा था पोते-पोती के साथ बहुत खुश थे | उसके साथ स्कूल आना-जाना, बाजार जाना, खिलोने लाना, कपड़े खरीदना आदि में बड़े मशगूल थे |

एक दिन विजय कृष्ण सारथी पोते के साथ सड़क पर घूम रहे थे और दोनों दादा-पोते केले खाने का मजा ले रहे थे | पोते ने एक केले का छिलका सड़क पर फ़ेंक दिया तो तुरंत विजय कृष्ण ने पोते को समझाते हुए कहा - बेटे : केले खाकर इस तरह छिलका सड़क पर नहीं फेंकते है, कोई फिसल गया तो उसके चोट भी आ सकती है | वो केले का छिलका उठाने ही वाले थे की उनकी पोती जोगिंग करती हुई आई और उसका पांव छिलके पर पड़ने ही वाला था की विजय कृष्ण ने उसे संभाल लिया | फिर उन्होंने पोते से कहा देखो अमन आपकी छोटी से गलती के कारण अभी दीदी गिर सकती थी | उन्होंने दोनों बच्चो को आगे समझाते हुए कहाँ की बेटे इस तरह कोई भी कचरा आदि सड़क पर नहीं फेंकना चाहिए | हमारा देश स्वच्छता के एक बड़े अभियान पर आगे बढ़ रहा है और हम सभी को भी इस पुनीत कार्य में सहयोग देना चाहिए |

दोनों बच्चो को यह बात अच्छे से समझ में आ गयी और उन्होंने स्वच्छता बनाये रखने और कचरा, प्लास्टिक आदि इधर-उधर नहीं फेंकने का संकल्प लिया | दोनों बच्चो ने अपने दादाजी को भी अच्छे से समझाने के लिए धन्यवाद दिया | अगर उन्होंने बच्चे को डांट कहा होता तो शायद उनकी बात का प्रभाव नहीं होता या उल्टा हो सकता था पर उन्होंने जिस तरीके और स्नेह से समझाया तो तुरंत बच्चो के समझ में आ गया और उसे अपने जीवन में अपनाने की ठानी भी | यही बात महत्वपूर्ण है की आप किस तरीके से अपनी बात, अपना पक्ष दुसरो के सामने रखते है जो प्रभावशाली हो |

जीवन में स्वच्छता का बहुत महत्व है आवश्यकता है तो सिर्फ उसे समझने और उस पर दिल से कार्य करने की | जब तक हम स्वच्छता से प्रीत नहीं करेंगे, स्वच्छता की रीत नहीं अपनायेगे तब तक हम स्वच्छता के मिशन को हासिल नहीं कर पाएंगे | इसलिए आप स्वयं स्वच्छ रहे, देश में स्वच्छता बनाये रखने में सहयोग दे | तभी यह देश आगे बढ़ेगा और उन्नति करेगा | साथ ही अपने विचार सदैव सकारात्मक रखे जो लोगो के अच्छे के लिए हो – भले के लिए हो |

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