इसे दर्द कहो या स्वाभिमान,मैं लौट के फिर न आऊँगा!
जिजीविषा
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वो जो इक चाह
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कलम भी रोती है
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अपनी कविता में तुमको पढ़कर
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एक अलिखित कविता
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कुछ लिखते हुए
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हे कवि ! मुझे बताते रहना
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ठीक नहीं
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ठोकर तो खाकर देखिये
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शायरी के सिवा
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अंतरात्मा का न्याय
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जाग उठो हे भरत पुत्र !
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ये सफ़र भी न अज़ीब है
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पैर तो कबके थके
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साक़ी
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तुम अगर लौट कर नहीं आये
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भला कैसे होगा
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कुछ तो बता ऐ जिन्दगी!
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प्यास
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कोई नहीं है बुरा धरा पर
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पीड़ा
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अप्सरा
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फ़र्जी राष्ट्रवाद
1861 1
ये तुम्हारे राग अंधे
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हवा के साथ बह जाना
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हे सखे! अब ले न चलना
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कोमल मन और कटु जीवन
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वो जो इक चाह घुटी है मन में
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है रात से मेरा प्रेम पुराना
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इनमे बात तो कुछ है
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हो के रुसवा तेरी निगाहों में
1260 1
तलाक़
1152 1
तो रहने दो
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विरहन
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मरघट का अट्टाहास
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क्या छुपाएँ-क्या बताएँ
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अजन्मा सच
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कब किस का होता है!
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रिन्द का फ़लसफ़ा
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अहो भाग्य!
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तुझसे छुपाने क्या-क्या!
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अश्रुओं में क्षार कैसे आ गया
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ऐसा उसके हाथों को छूकर लगता है!
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अल्हड़ कवि
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आखिर मान लूँ कैसे?
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हद करते हो!
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सोच लेना ऐ भँवरे!
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अनिर्णीत भाव
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प्यास के उस छोर पर
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एक स्वप्न : परिवर्तन के बीज
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नागफनी का पौधा
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