मेरा मन Anupama Ravindra Singh Thakur
मेरा मन
Anupama Ravindra Singh Thakurबैठे-बैठे क्यों भटक जाता है मेरा मन,
यहाँ-वहाँ कहाँ-कहाँ की सैर कर आता है मेरा मन।
पढ़ाई में लाख यत्न करने पर नहीं लगता है मेरा मन,
देास्तों के बीच हमेशा खुश रहता है मेरा मन।
किताबों को देख डर जाता है मेरा मन,
परीक्षा का नाम सुनते ही सहम जाता है मेरा मन।
अनुशासन में जीने से कतराता है मेरा मन,
जो जीवन में ज़रूरी है, उसी से दूर जाना चाहता है मेरा मन।
चाहे जैसे भी हो, इसे मुट्टी में बाँधना है,
यह कहता है मुझसे मेरा मन।
एक दिन यह भी संभव होगा,
यह कहता है मुझसे मेरा मन
यह कहता है मुझसे मेरा मन।