याद़ों की परत Rajender कुमार Chauhan
याद़ों की परत
Rajender कुमार Chauhanयाद़ों की परत जमती चली गई,
जितना दबाया, बढ़ती चली गई।
राह पर लगा तो लाए थे बातों में,
बात बन कर बिगड़ती चली गई।
दिल को है अभी किसी का इन्तज़ार,
याद़ों में याद़ और जुड़ती चली गई।
क्या गुज़रे इस रहगुज़र से कभी,
रहा-ए-ज़िन्दगी मुड़ती चली गई।
मुहब्ब़त के हम हो गए मोहताज़,
माशाल्लाह! वो अकड़ती चली गई।
कोशिशें नाकाम रहीं भुलाने की,
बिसरी बातें सारी उमड़ती चली गई।
ख्वाब़ में फिर से होने लगा दीद़ार,
आँखों से आँख लड़ती चली गई।
दिन के साथ ढ़लता गया शबाब़,
शाम को शराब़ चढ़ती चली गई।