सुकूं का सामां  Rajender कुमार Chauhan

सुकूं का सामां

Rajender कुमार Chauhan

उलफ़त की इश्क़ तिज़ारत में,
सुकूं का सामां नहीं मिलता!

हर ग़म के मिलते हैं दर्द़ यहाँ,
पर दर्द़ का द़ाम नहीं मिलता!

कहीं दिल में चैन से रहने को,
ढंग का इक मकां नहीं मिलता!

द़ौलत श़ोहरत मुमकिन है यहाँ,
मुहब्बत का मुक़ाम नहीं मिलता!

मिटते हैं आशिक़ हर रोज़ यहाँ,
उलफ़त का ईनाम नहीं मिलता!

मेहनतक़श कितना क्यों ना हो,
आशिक़ को काम नहीं मिलता!

मर मर कर जी लो लाख यहाँ,
द़ौर-ए-इन्तक़ाम नहीं मिलता!

क्या कहें खुद़ा इस कुद़रत को,
क्यों माशूक़ बनाम नहीं मिलता!

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