मातृभाषा का उल्लास Rajender कुमार Chauhan
मातृभाषा का उल्लास
Rajender कुमार Chauhanउल्लास नहीं तो वास नहीं,
वास नहीं, फिर रास नहीं।
उल्लास मातृभाषा के संग,
उल्लास में ही बाजे मृदंग,
उल्लास में है उड़ती पतंग,
उल्लास है जीवन का रँग।
उदित उच्चतम है उल्लास,
पाठकों की बुझाता ये प्यास,
उल्लास नहीं तो वास नहीं,
वास नहीं, फिर रास नहीं।
उल्लास है जीवन का सार,
उल्लास है मन की पुकार,
उल्लास में जो करो विश्वास,
उल्लास करे सपने साकार।
जनजनार्दन का उल्लास,
करे किसी को ना निराश,
उल्लास नहीं तो वास नहीं,
वास नहीं, फिर रास नहीं।
फल ना मिले तो भी उल्लास,
उल्लास सर्व अपने है पास,
हर्षोल्लास का है ये उत्सव,
उत्सव सब के लिए है खास।
उत्सव है तो सर्व है उल्लास,
बिन उत्सव भी सब बिन्दास,
उल्लास नहीं तो वास नहीं,
वास नहीं, फिर रास नहीं।