चाँद - चक़ोरी Rajender कुमार Chauhan
चाँद - चक़ोरी
Rajender कुमार Chauhanमेरे गाँव की सुन्दर गौरी है,
मैं चाँद नहीं, वो चक़ोरी है!
वो निर्मल सी बहती सरिता,
मैं पानी पर लिख दी कविता,
दोनों विरहा में व्यस्त रहे,
ना वो हारी, ना मैं जीता।
अब भी कागज़ सी क़ोरी है,
मैं चाँद नहीं, वो चक़ोरी है!
सुन्दर सजीली बाला है,
खेत खलियान की ग्वाला है,
फिरे कूदती संग सखियों के,
यौवन मदमाती हाला है।
नज़रों से करती चोरी है,
मैं चाँद नहीं, वो चक़ोरी है!
बादल बारिश बन आए थे,
एक दूजे में वो समाए थे,
बिजली बन वो कड़क गई,
बचे भूले बिसरे साए थे।
वो नटखट अल्हड़ छोरी है,
मैं चाँद नहीं, वो चक़ोरी है!