चापलूसी Anupama Ravindra Singh Thakur
चापलूसी
Anupama Ravindra Singh Thakurचापलूसी एक कला है
जो ईमानदार, प्रतिभाशाली और
बुद्धिजीवियों के लिए बला है।
बॉस के पहले जो ऑफिस पहुँच जाएँ,
उनके कार के सामने हाथ जोड़ खड़े हो जाएँ,
मुस्कुराकर बस यही जता जाएँ
कि हम से अधिक ईमानदार आप कोई न पाएँ,
हर क्षण मुस्कुराकर बॉस के चरणों में जो झुक जाएँ,
बॉस के आस-पास गुड़ पर मक्खी की तरह मँडराएँ,
बिना कारण बॉस के ऑफिस के चक्कर लगाएँ,
सचमुच चापलूसी एक कला है
जो ईमानदार, प्रतिभाशाली और
बुद्धिजीवियों के लिए बला है।
इनका होता है केवल एक ही काम,
सुबह-शाम जी हुजूरी और यस मैम,
बॉस की प्रशंसा कर उसे लुभाना,
औरों के सामने एडे बनकर पेडे खाना।
इनका न होता कोई धर्म और ईमान,
चापलूसी का तो बस एक ही भगवान,
उच्चाधिकारियों की जय-जयकार और गुणगान,
ये तो होते हैं केवल कुर्सी के गुलाम,
जो बैठे हैं कुर्सी पर उसी को ठोकते हैं सलाम।
सचमुच चापलूसी एक कला है
जो ईमानदार, प्रतिभाशालीं और
बुद्धिजीवियोंके लिए बला है।
होती हैं इनकी आँखों में चालाकी
और होठों पर मंद-मंद मुस्कान,
दूसरों के मन की बात निकालने में
ये होते हैं विद्वान।
मीठी बोली और मन में कटुता
यही इनकी पहचान,
बॉस के पसंद नापसंद का
लगा लेते हैं ये झट से अनुमान।
चापलूसी के बल पर कब तक
टिकेगी इनकी ये झूठी शान ?
तलवे चाट कर कब तक बने रहेंगे ये महान ?
एक ना एक दिन तो होगी प्रतिभा की पहचान,
छोड़ो चाटुकारिता और चापलूसी की ये झूठी शान,
अब तो कर लो ऊपर वाले का ध्यान,
अब तो छोड़ो जी हुजूरी और बढ़ाओ अपना ज्ञान,
बनकर बुद्धिजीवी और प्रतिभाशाली पाओ जगत में मान और सम्मान।