कशमकश-ए-जिन्द़गी Rajender कुमार Chauhan
कशमकश-ए-जिन्द़गी
Rajender कुमार Chauhanये आया, वो गया, ये साल वो साल,
ख्वाब़ की ताबीऱ है जेहऩ में सवाल,
कर लो इरादे चाहे या माँग लो मुराद़ें,
गुज़रना ही है, इस हाल - उस हाल!
नए साल से कुछ नई उम्मीद़ होती है,
इंशाल्लाह हसरतों की ईद़ होती है,
हर लम्हा ज़िन्दगी की रशीद़ मगर-
आख़िरी सफर की ताकीद़ होती है!
चाहे जुद़ाई कह लो इसे या इन्तक़ाल,
गुज़रना ही है, इस हाल - उस हाल!
जो जिया है उसका शुक़राना कर लो,
जो मिला है उसका नज़राना कर लो,
नहीं मिला जो मुक्कद़र में नहीं था,
करमों का फिर से मुआयना कर लो!
ज़िन्दगी को खुशहाल करो या मुहाल,
गुज़रना ही है, इस हाल - उस हाल!