मतवाले बादल Anupama Ravindra Singh Thakur
मतवाले बादल
Anupama Ravindra Singh Thakurहे! मतवाले, नटखट, मनमौजी सलिल,
मैं मानती हूँ तुम हो बहुत चंचल,
इस बार रूठ कर कहीं मत जाना,
अब आए हो तो
मेरी नगरी में बरस कर जाना।
मेरा किसान चातक पक्षी की भांति
तुम्हारी ओर आशा से देख रहा है,
कभी तुम्हारी ओर तो,
कभी मरुस्थल बने भूमि को निहार रहा है।
देखो इस बार फिर से धोखा ना दे जाना,
अन्न उगाने वाला हमारा अन्नदाता
अन्न के लिए तरस रहा है,
खाली पड़ी अपनी भूमि को
शमशान ही समझ रहा है।
अगर तू इस बार भी नहीं बरसेगा
तो आत्महत्याओं का यह सिलसिला
फिर कैसे रुकेगा?
कुछ तो हमदर्दी इन पर भी बताना,
इस बार रूठ कर कहीं और न जाना।