पानी पुनर्चक्रण  Rajender कुमार Chauhan

पानी पुनर्चक्रण

Rajender कुमार Chauhan

नीर समाय धरती के घट,
जल स्तर में वृद्धि हुई जाय,
चूवत बूँद-बूँद हर कण में,
छनत-छनत शुद्धि हुई जाय!
 

संचित होय नीर जब नभ में,
मेघा लावत फिरत जगत में,
परत भूमि पर रिसत गर्भ में,
शिखर गिरै हिम जमत परत में,
पुनर्चक्रण इस विधि हुई जाय!
 

नीर संजोये हर घर आँगन,
वृक्षारोपण होय हर सावन,
शुद्ध जल की रहे ना किल्लत,
पर्यावरण भी लगैहिं सुहावन,
निरखि परख सिद्धि हुई जाय!
 

कामधेनु सौं नहीं है मन्तर,
भू भण्डारण घटैहिं निरन्तर,
प्रभु सकल भई जुरी सम्पदा,
जमा घटा दुहत नहीं अन्तर!
या बल नष्ट निधी हुई जाय!

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