भारतीय किसान  Rajender कुमार Chauhan

भारतीय किसान

Rajender कुमार Chauhan

कच्चे घर संकरी पगडंडी,
सुदूर साधारण सा गाँव हूँ,
पथ में काँटे कंटीली झाड़ी,
थका हारा एक किसान हूँ!
 

मैले कुचैले से पहने कपड़े,
हल कान्धे बैल रस्सा पकड़े,
क्या आँधी तूफान बरसात,
तपी दोपहरी में निकल पड़े,
बंजर भूमि उपजाऊ बना दूँ,
मैं वो मेहनतकश इन्सान हूँ!
 

पशुपालन मेरी पहचान है,
खेत खलिहान मेरा जहान है,
उपज मेरी है पालक पोषक,
कृषि कार्य जन सेवा समान है,
उन्नति प्रगति में भी भागीदार,
देश का मैं ही राष्ट्रीय गान हूँ!
 

प्रकृति का भी है खेल अनोखा,
कभी बाढ़, तो कभी है सूखा,
कोटि-कोटि जन को देता अन्न,
और 'अन्नदाता' स्वयं है भूखा!
अपने मूक पशुओं की भाँति,
मैं अनपढ़ गंवार बेजुबान हूँ!
 

घर बँटे, जायदाद बँटी है,
परिवार बढ़े, जमीन घटी है,
आमदनी तो जस की तस है,
महँगाई मुँह बाये खड़ी है!
शहरों में ना बनी इमारत,
मैं तो मिट्टी का मकान हूँ!
 

सरकारी उधारी पर पड़ा हूँ,
अफसरशाही से लड़ा हूँ,
फसल रौंद दी ओला वृष्टि ने,
कर्ज की बैसाखी पर खड़ा हूँ,
देश के नारों में बुलन्द मैं -
"जय किसान जय जवान" हूँ !

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