पुरुषार्थ Anupama Ravindra Singh Thakur
पुरुषार्थ
Anupama Ravindra Singh Thakurमनुष्य जन्म दुर्लभ है
मत व्यर्थ में इसे खोना,
परिश्रम करके ही निखरता है
शरीर हो या सोना।
औरों के सुख ना देख तू
इर्ष्या जलन ही पाएगा,
खुद में ही मन लगा
आसमान छू जाएगा।
मत निराश हो यह सोच
तेरी परेशानियाँ अधिक हैं,
परिस्थितियों से जूझ कर ही
और सामर्थ्यवान बन जाएगा।
सूर्य हर रात अंधकार से लड़ता है
तभी जग में प्रकाश होता है,
कर्महीन होकर तो
पशु भी भोजन नहीं पाता है।
वन के राजा सिंह को भी
आखेट के लिए घूमना पड़ता है,
बिना पुरुषार्थ के तो
भाग्य भी कुछ नहीं कर पाता है।