मन मेरा दुखता है Anupama Ravindra Singh Thakur
मन मेरा दुखता है
Anupama Ravindra Singh Thakurकक्षा के बाहर देख उसे
मन मेरा दुखता है,
क्यों वह और बच्चों सा नहीं
मन में यह प्रश्न उठता है।
हर शिक्षक की ज़ुबान पर
बस नाम उसी का आता है,
वह गलत है या हम गलत हैं
मन में अंतर्द्वंद्व यह चलता है।
हमें उसकी अपेक्षानुसार बनना है या
उसे अपनी अपेक्षानुसार बनाना है,
प्रश्न यह बहुत ही खलता है?
शिक्षक उसकी कमियाँ बताते,
अक्सर कक्षा में वह सोता है,
जब वह जाग जाए
उधम वह खूब मचाता है,
कह ले कोई कुछ भी
पास तो वह हो ही जाता है।
कैसे हो सकते हैं
सब बच्चे एक जैसे,
फिर क्यों सबको एक साथ
एक जैसे ही पढ़ना है?
अपनी क्षमता के अनुसार
क्यों नहीं उनको ढलना है?
यह कैसी शिक्षा नीति है?
जो सब को साथ चलने को कहती है?
खरगोश और कछुए में दौड़ लगाती
संग-संग उन्हें दौड़ने कहती है।
अब तो कुछ बदलाव आए
हर बच्चा तनाव रहित
मज़े से पढ़ पाए।
भय, तनाव, कुण्ठा का सर्वनाश हो,
केवल और केवल सहजता से
बुद्धिकौशल का विकास हो।