पाक को नसीहत Anupama Ravindra Singh Thakur
पाक को नसीहत
Anupama Ravindra Singh Thakurअब तो रुक जा ऐ पाकिस्तान
कब तक इंसानियत को करेगा शर्मसार?
बेगुनाहों की लाशें बिछाकर
क्या उससे एक नई सरहद बनाएगा?
'पाक' शब्द की तौहीन कर
और कितनी मौत की फैक्ट्रियाँ चलाएगा?
हर तरफ बारूद का बिस्तर लगाकर
क्या तू खुद चैन से जी पाएगा?
मज़हब के नाम पर गुमराह कर
और कितने मासूमों को फिदा करवाएगा?
आज हर घर में सिसकियाँ और मातम है
दस लाशें इधर तो आठ लाशें उधर हैं।
लगता है तुझे फकीर बन कर जीना ही मंजूर है
इसीलिए तो आवाम के पैसों से
बारूद बनाने में तू मशगूल है।
तरक्की से तू कोसों दूर खड़ा है
हर तरफ कंगाली, भुखमरी और जफ़ा है,
इसीलिए तो तेरे यहाँ ज़िन्दगी
बेआबरू हो कौड़ियों के दाम बिक रही है।
हर शख्स ज़िन्दगी से बेजार है
इसलिए मौत को गले लगा कर
फिदा होने के लिए तैयार है।
अब तो इबादत खाने में
बस तू इबादत कर,
आतंक के लिए ना उसे
अब तू इस्तेमाल कर,
अब तो उसकी कज़ा से डर
हिंदुस्तान की तरह
इंसानियत से प्रेम कर
तभी सच्चे अर्थों में
तू पाक (पवित्र) स्थान कहलाएगा।