गलत देह में कैद हूँ मैं सीमा भुनेश्वर सिंह
गलत देह में कैद हूँ मैं
सीमा भुनेश्वर सिंहना मरद में गिनती
ना जनाना-सी दिखती,
सामान्य से विशिष्ट हूँ,
इसलिए सबसे दूर हूँ मैं...
गलत देह में कैद हूँ मैं....
पुरुष जैसी काया, विकृत,
अर्धविकसित लिंग पाकर,
स्वयं का नारी रूप स्वीकारती,
साज-श्रृंगार करती
तन से नहीं पर मन से स्त्री ही हूँ मैं...
बस गलत देह में कैद हूँ मैं......
स्तन, योनि, गर्भाशय
जन्म से हैं अधूरे मिले,
नहीं होती रजस्वला,
बच्चे भी नहीं जन सकती,
पर प्रीति की अनुभूति महसूस करती
प्रेम, समर्पण, ममता की मूरत हूँ मैं....
बस गलत देह में कैद हूँ मैं.......
घर से डोली नहीं उठती,
अपनों संग हँसी ठिठोली नहीं कर सकती,
दद्दा, दिदी की खुशियों के खातिर,
प्यारा आशियाँ छोड़ने को विवश,
बेबस, मजबूर हूँ मैं.....
क्योंकि गलत देह में कैद हूँ मैं........
तिरछी निगाहों से घूर मुझे,
गलीच, हीन, तिरस्कृत, अपमानित करते हैं....
कुछ मुझसे डरते,
तो कुछ धमकाते और घिन्नाते हैं....
सब कुछ सहकर
रक्ताभ आँसू मौन हूँ मैं.....
क्योंकि गलत देह में कैद हूँ मैं......
इस अनादर्श भंग अंग को,
चीर-फाड़ कर, काट-जोड़कर,
दैहिक, मानसिक ज़ख्म,
दाह को परास्त कर
आदर्श लुभावन बनाने हेतु
रोम-रोम सिहरती हूँ मैं....
क्योंकि गलत देह में कैद हूँ मैं......
पृथक ना करो, त्याज्य ना मानो,
किंचित तुम गर मनुज ही समझो,
अपनों में परायी, गैरों में अपनापन तलाशती,
बिछुड़ी डार से एक टोह हूँ मैं.....
क्योंकि गलत देह में कैद हूँ मैं..........
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साथियों, स्त्री तथा पुरुष प्रकृति के दायरे में सीमित ना रहकर अपनी एक अलग पहचान लिए किन्नर (तृतीय लिंगी/थर्ड जेंडर व्यक्ति) भी हमारे ही परिवार तथा समाज की परिधि में आते हैं क्योंकि इनका जन्म भी पूर्णरूपेण स्त्री-पुरुष के द्वारा ही होता है जैसे कि हम सभी हैं। इसलिए इनके अस्तित्व को स्वीकारना और इन्हें सम्मान देना हमारा कर्तव्य है, हमारी जिम्मेदारी है। इसी संदर्भ में - एक तृतीय लिंगी व्यक्ति के जीवन के कटु सत्य को, अंतर्मन की पीड़ा को अभिव्यक्त करने की कोशिश करती मेरी कविता 'गलत देह में कैद हूँ मैं' आपके सभी के समक्ष प्रस्तुत है। मुझे उम्मीद है यह कविता समाज में किन्नर समाज के प्रति जो शारीरिक/मानसिक भ्रम है उसे दूर कर, जागरूकता लाने हेतु समर्थ होगी।