लकीरें हाथों की !  Surya Pratap Singh

लकीरें हाथों की !

Surya Pratap Singh

कोरे कागज़ सा जीवन सभी का यहाँ
हाथ सभी को दिखाते फिरो न यहाँ,
निराशा आशा मे न बदलेंगी यूँ ही
उन्मुक्त मन से कुछ प्रयत्न करो तो कभी।
 

मन बहकने लगे तो ठिठक जाओ जरा
मन को शीतल छाँव के आगोश मे लो,
अब तलक किन पगडंडियों पर चल रहे थे तुम
नूतन विचारों पर विमर्श करो तुम जरा।
 

स्वप्न मात्र से होता कुछ हासिल नहीं
स्वप्न को आचरण मे अगींकार करो,
सूचियाँ बनाकर प्रयत्न तुम करो
पथ प्रदर्शन मे फिर कोई अवरोध नहीं।
 

हो लकीरें जो हाथ मे कुछ कम आपके
व्यर्थ उदास बैठकर यूँ न चिन्तन करो,
कोशिशों की करो तुम पराकाष्ठा
लकीरें नई उकेरने को विवश हो जाए विधाता।
 

हाथ की ये लकीरें, सिर्फ लकीरें नहीं,
आप के ही अनन्त कर्मों का परिमाण है,
कर्म किए, दर्द सहे उम्रभर जो तुमने कहीं
ये लकीरें उन्ही स्वप्नों का आयाम है।

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