किसान Aman Kumar Singh
किसान
Aman Kumar Singhमैंने एक दिन सुना
एक किसान था, वो मर गया,
सबके जहन में ये सवाल था,
वो क्यों मरा?
परेशान था या हताश था
या किसी बात पर वो निराश था?
उसने क्यों किया?
सोचा नहीं परिवार का,
उनका होगा क्या उसके बिना।
एक खबर आई कहीं से
उस पर कर्ज़ था, एक बोझ था
बीज का और खाद का
जिसे ज़िन्दगी में वो चुका न सका,
रोया था वो मरने से पहले
उसे इल्म था उसने क्या किया?
सबके ज़हन में फिर सवाल था,
उसकी मौत का कौन जिम्मेदार था?
सरकार थी या परिवार था?
या स्वयं वो गुनहगार था?
उसकी मौत के कुछ दिन बाद में,
आए कुछ महान आत्मा,
दी सांत्वना, वादा किया,
और ज़हर फिर उगल दिया।
था ज़हर वो धर्म का,
क्षेत्र का और जात का।
वो गए, वादा गया,
उस घर में अब कुछ न बचा,
उसकी मौत का जो सवाल था
वो सवाल भी फिर मर गया।
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विगत 8-10 वर्षों में प्रायः हम पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज़ चैनलों पर किसान की आत्महत्या की खबरें पढ़ते और सुनते आए हैं। उस दौरान लोगों में खूब आक्रोश दिखता है, राजनेता लोग भी सक्रिय नज़र आते हैं, किंतु कुछ ही दिन में उस किसान और उसके परिवार को सब भूल जाते हैं। यह कविता एक किसान की आत्महत्या और उस दौरान हुई प्रतिक्रियाओं को रेखांकित करती है। आशा करता हूँ कि यह कविता आप सबको पसंद आएगी तथा आप चंद मिनटों के लिए ही सही उस सम्पूर्ण घटनाक्रम को अपने आँखों के सामने तैरता हुआ पाएँगे।