किसान  Aman Kumar Singh

किसान

Aman Kumar Singh

मैंने एक दिन सुना
एक किसान था, वो मर गया,
सबके जहन में ये सवाल था,
वो क्यों मरा?
परेशान था या हताश था
या किसी बात पर वो निराश था?
 

उसने क्यों किया?
सोचा नहीं परिवार का,
उनका होगा क्या उसके बिना।
 

एक खबर आई कहीं से
उस पर कर्ज़ था, एक बोझ था
बीज का और खाद का
जिसे ज़िन्दगी में वो चुका न सका,
रोया था वो मरने से पहले
उसे इल्म था उसने क्या किया?
 

सबके ज़हन में फिर सवाल था,
उसकी मौत का कौन जिम्मेदार था?
सरकार थी या परिवार था?
या स्वयं वो गुनहगार था?
 

उसकी मौत के कुछ दिन बाद में,
आए कुछ महान आत्मा,
दी सांत्वना, वादा किया,
और ज़हर फिर उगल दिया।
था ज़हर वो धर्म का,
क्षेत्र का और जात का।
 

वो गए, वादा गया,
उस घर में अब कुछ न बचा,
उसकी मौत का जो सवाल था
वो सवाल भी फिर मर गया।

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