बिन पेंदी का लोटा Surya Pratap Singh
बिन पेंदी का लोटा
Surya Pratap Singhबिन पेदीं लोटे की तरह लुढ़क जाते हों,
बात-बात पर वफा की दुहाई दिए जाते हों,
ऐसे मे कोई वफा की उम्मीद क्या करे उनसे,
चिराग बुझते ही जिनके खेमे बदल जाते हों।
स्वार्थ एवं फायदे की नीयत ही हो जहाँ,
षडयत्रों के जाल बुने जाते हो जहाँ,
वफा की उम्मीद बेमानी है वहाँ,
होठों पर कुछ और मन में कुछ और हो जहाँ।
आज हैं यहाँ कल होगें कहाँ
कयास लगाना ही बेईमानी है,
किससे, कहाँ से, कैसे हो फायदा,
ऐसों की सिर्फ यही ईमानदारी है।