हमारी धरती हमारी ज़िम्मेदारी  SMITA SINGH

हमारी धरती हमारी ज़िम्मेदारी

SMITA SINGH

परी और आवरण, दो छोटे शब्दों का संगम
बना देता है विहंगम पर्यावरण,
जंगल न काटो, इसे बचाओ,
जल संरक्षण कर लो जो जीवन रक्षक जैसा है
हम पर है ज़िम्मेदारी जो कहती हम सब को
प्रदूषित वातावरण पर्यावरण के लिए हानि,
अहसान करो इतना बस,
कि बालक समझो इसे अपना ही, इसे बचाओ।
 

वैसे तो धरती माता ने निस्वार्थ आज तक मानव रक्षा की,
आवाज़ इसकी मुखर हो पड़ी दुनिया के रंग देख निराले,
बड़े जोर से इसने आवाज़ बुलंद कर अहसास कराया,
जब देखी मानव की अनदेखी,
उसी पर्यावरण के प्रति जिस कारण अस्तित्व था और हर पल रहेगा,
कह रहा है पर्यावरण जैसे उसके मन की वेदना मुखर हो गई
जो अब बताना आज जरूरी है।
 

नहीं कहे आज अगर तब पछताने से क्या बात बनेगी,
यह देखो, क्या कहती है, भले जन सुनो जरा और ध्यान दो,
इसे बचाओ, इसे न नष्ट करो।
 

तुझे देते हम हर साज़ पल-पल कहती मेरी आवाज़,
गीत अधूरे हैं बिन साज़ यह भी कहना है मुझे आज,
बारिश की बूँदें भी हमसे, हरीतिमा धरती की हमसे,
फूलों की क्यारी भी हमसे, पक्षियों की चहचहाहट भी हमसे,
सरसों की क्यारी भी हम से, रंग बिरंगे फूल भी हम से।
 

सुंदर इंद्रधनुष भी हमसे, छटा धूप की भी है हम ही से,
अहसान करो इतना ही बालक समझो मुझे अपना ही,
जैसे बालक की देखभाल की लेते तुम पूरी जिम्मेदारी,
वैसे ही मान लो मुझको भी और पूरी करो जिम्मेदारी।
 

वृक्ष की छाया भी देते तुमको हम जब थक हार कभी तुम आते हो,
मूक से तुम जब होते हो कभी और जब तुम मुझको खोजते हो,
बड़े ही निस्वार्थ भाव से बिना किसी संकोच के
तुमको ये अधिकार हम देते हैं,
आसमान तुम्हारा और वृक्ष भी तुम्हारे हैं
यह अहसास कराते हैं,
बदले में बस है एक ही विनती,
मुझे बचाओ, मुझको न बर्बाद करो।
 

वर्षा की बूँदें जब झरती पत्तों और क्यारी पर,
कितनी मनभावन लगती लाल गुलाबी दुनिया प्यारी,
ओस की बूँदें झरे जब, दृश्य कितना मनभावन हैं,
क्या कुछ ऐसा संभव हैं,
और क्या यह मानव निर्मित है?
कहीं दिल से आवाज़ उठी और बोल पड़ी अनायास,
धरती का निर्माण करने की कोशिश होगी नाकाम,
इसकी रक्षा बस कर लो और कर दो बस इतना अहसान।
 

धरती की प्राकृतिक छटा न तो संभव हम से है
न ही हम से निर्मित है,
बस अपेक्षा है सभी से इसकी रक्षा हम पर है।
जो आज दशा हो गई धरती की जो दिखती इन सब रूप में,
वैसे तो अनगिनत हैं पर, सर्वोपरि ओजोन क्षरण है।
मिट्टी क्षरण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण,
वायु प्रदूषण, वाहन प्रदूषण
कितने ही इसके रूप हैं,
आज आओ, हम दृढ़ हो जाएँ और इस दिशा में अग्रसर हो जाएँ,
पेड़ लगाएँ, स्वच्छ एक संसार बनाएँ,
धरती की रक्षा हमसे ही और जिम्मेदारी हमारी है,
बात आखिरी कहनी मुझको
मुझे बचाओ मुझ पर यह अहसान करो।

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