छलावा Anupama Ravindra Singh Thakur
छलावा
Anupama Ravindra Singh Thakurकैसे उबरें
जब अपनों से ही धोखा मिलता है,
अपने ही म्यान का खंजर
अपने ही छाती में घुसता है।
प्राणों से भी अधिक
जिस पर हमने प्यार किया,
उसके ही चोटों ने
घायल हमें बार-बार किया।
उसे कहाँ अब फुर्सत है
आज हम से बतियाने की,
जिसे कभी
हमारे पीछे-पीछे चलते
दुनिया ने देखा है।
खुशकिस्मत समझते थे वे
कभी अपने आपको
हमें पाकर,
चल देते हैं वे ही आज
हमसे नज़रें अपनी बचाकर।
प्यार, इश्क, मोहब्बत
बस एक छलावा है,
समय के साथ-साथ
सब कुछ मिट जाना है।