नियति Anupama Ravindra Singh Thakur
नियति
Anupama Ravindra Singh Thakurएक छोटी सी लकड़ी की मचान पर
जहाँ चारों ओर से
गली सड़ी सब्जी की
बदबू आ रही है,
बैठी है वह
माथे पर सिलवटें लिए
आंखें पथराई सी।
सूने चेहरे पर कोई नूर नहीं
चिंता में काला पड़ा मुख,
निस्तेज, निस्साहय, निर्बल सी
काँटे के समान सुखी देह
बयाँ कर रही उसकी बेबसी।
सामने कुछ जूड़ियाँ पड़ी हैं
हरे धनिए की,
कभी उनकी ओर दृष्टि डालती
तो कभी
आने-जाने वालों को निहारती,
लाचार निराश्रित, विवश सी,
जो है उसे
अपनी नियति मान,
मूक बन
सब कुछ केवल स्वीकारती।