मैं झाँसी की रानी Anupama Ravindra Singh Thakur
मैं झाँसी की रानी
Anupama Ravindra Singh Thakurहाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ,
व्यंग में ही सही
पर लोग सच कहते हैं
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
सूरज के पहले जग जाती हूँ,
उसे जग की चिंता है
मैं परिवार की चिंता में
उससे पहले उठ जाती हूँ,
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
व्यंग में ही सही,
पर लोग सच कहते हैं
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
किसकी क्या पसंद है
क्या नापसंद है,
सुबह-सवेरे
दो भुजओं वाली से
मैं अष्ट भुजाओं वाली बन जाती हूँ,
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
व्यंग में ही सही,
पर लोग सच कहते हैं
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
घर और बाहर दोनों युद्ध के मैदान हैं,
कभी अर्जुन की तरह
निराशा में बैठ जाती हूँ
तो कभी
शस्त्र हाथो में ले
युद्ध में जुट जाती हूँ,
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
व्यंग में ही सही
पर लोग सच कहते हैं,
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
भावनाओं को मन में दबा
शिव जी की तरह
दर्द का विष पिए जाती हूँ,
खुद के लिए जीना नहीं जानती
बस यही भूल किए जाती हूँ,
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।
व्यंग में ही सही,
पर लोग सच कहते हैं
हाँ, मैं झाँसी की रानी हूँ।