पानी RAHUL Chaudhary
पानी
व्यक्ति समस्यायों से घिरा रहता है एवं उनसे हारकर कुछ कुकृत्यों को विवशता में कर देता है। मगर बार-बार दोहराया जाना उसे अपराध की ही श्रेणी में खड़ा करता है।
भारत के मध्य भाग में पहाड़ियों के बीचोंबीच एक छोटा सा गाँव था। कुछ परिवारों से बना यह गाँव अविकसित था एवं काफी पथरीली ज़मीन से घिरा हुआ था। यहाँ पूरे साल जाड़े, बरसात और बसंत में सुख शांति बनी रहती थी परन्तु गर्मी के आगमन के साथ इनकी सुख शांति निद्रा तंग भंग रहती है। कारण है जल स्तर का नीचे जाने से जल के सभी स्रोतों का निर्जीव हो जाना। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में जल का योगदान जगविदित है, अतः यहाँ प्रायः पानी की किल्लत रहती थी। लोग दूर-दूर तक भटक कर के किसी तरह जीवन जीने की व्यवस्था कर लेते थे। परंतु घोर गर्मी में यह कार्य भी सरल नहीं था। चिड़ियों की चहचहाहट से पहले यहाँ के लोगों और बर्तनों की टकराने के दृश्य आम हो चले थे। समस्या चूंकि पानी की थी जो पथरीले इलाके में वर्षा के जल का भंडारण में विफल रहने और यहाँ जल संरक्षण की समुचित व्यवस्था के ना होने और इसकी अशिक्षा भी कारण है।
तड़कती गर्मी में सारे जलाशय निर्जीव हो चले होते हैं। उस गाँव से थोड़ी दूर एक पुराने कुएँ में कुछ पानी इकट्ठा हो जाता है, तो कुछ लोग पहले पहुँचकर कर उसका लाभ लेते हैं। लेकिन कुछ वृद्ध परिवार जो चलने में असहाय एवं कमजोर हैं उनके लिए इतनी दूर आना जाना संभव नहीं हो पाता, फिर भी करना पड़ता था। पंचायत ने घोषणा की कि लोग कतारों में पानी भरें, आलम ये होता था कि कतार में पहले खड़े लोग पानी पा जाते मगर देर से आए लोग वंचित रह जाते थे।
उसी भीड़ में एक वृद्ध महिला मटके लेकर दर्द भरे कदमों से आती और कतार में लग जाती, कभी पानी मिलता तो कभी नहीं मिलता था। कुछ दिन बाद शोर हुआ कुएँ में पानी खतम। दो दिन से पानी नहीं निकला, लोग वहाँ पहरा देने लगे कि कब पानी निकल आए। कुछ दिनों पश्चात पानी निकला परंतु सबल और तेज़ तर्रार लोग ही इसका फायदा ले पाते। तो पंचायत ने फिर फैसला लिया कि पानी लोग अपने काम भर का लें और बाकी औरों को लेने दें और अगली बार पानी वो भरे जो पहली बार वंचित हो गए हो। लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया, कुछ दिनों बाद गाँव में पानी की चोरी की घटनाओं की भी आवाज़ उठी। पीड़ित था उस वृद्धा अम्मा का परिवार जिसमें एक बूढ़े पति, उनकी पत्नी खुद अम्मा थे। जिसमें पति बीमार थे और सभी कार्य वृद्धा के सिर पर था। परिवार कम था तो खर्चे भी कम थे, अतः लोगों की नज़र इनपर और इनके भंडारित जल पर थी।
एक दिन वृद्धा गाँव के लोहार के घर तीन बाल्टियाँ मरम्मत करने को ले गई जिससे उसमें पानी रखा जा सके। वो बैजू लोहार से बोली, "बेटा ठीक से मरम्मत कर दो जिससे पानी ना रिस सके। मैं लाचार इस उम्र में ज्यादा भागदौड़ नहीं कर पाऊँगी।" अगली सुबह वृद्धा के घर से शोर हुआ और भीड़ इकट्ठा हुई। बाल्टी के पास पानी गिरा था परन्तु ज़मीन रेत से भरी थी कुछ पता नहीं चल रहा था कि सचमुच पानी वहीं गिरा और रेत में सूख गया। लोग अपने-अपने विचार व्यक्त किए जा रहे थे। सभी अपने जल पात्रों को कड़ी निगरानी में रखने लगे।
शनिवार का दिन था, गाँव के लोग बाज़ार गए थे, वृद्धा भी बीमार बहरे पति के लिए दवा लेने गई थी। बाज़ार से वापस आई, वह घर की हालत देख दंग रह गई, जल के पात्र उल्टे पड़े थे और अगल बगल पानी बिखरा पड़ा हुआ था। ज़मीन इस बार पहले की अपेक्षा कम गीली थी। लोग आए, वही प्रतिक्रिया दोहराए, मगर कुछ जागरूक लोग मामले को भाँप गए और शाम को पंचायत बुलाई गई और सबकी राय माँगी गई। उसमें से कुछ ने थोड़ा-थोड़ा करके वृद्ध परिवार के लिए पानी की पूर्ति की। परंतु मामला वहीं का वहीं, लोग असमंजस में कि कौन ऐसा कर सकता है। एक बुद्धिजीवी ने पंचायत के समक्ष अपने विचार रखे, वही हो सकता है जिसका पानी का व्यय सबसे अधिक हो और व्यय उसी परिवार में अधिक होगा जिसकी जनसंख्या सबसे ज्यादा हो। लोग इस महानुभाव के विचारों से सहमत हुए, मगर ये चोर कौन है, किसपर शक करें चर्चा होने लगी। तभी एक दंपति अपने छोटे बच्चे को लेकर पंचायत के पास आते हैं कि पानी चोरी के बारे में बच्चा कुछ कह रहा है। पंचायत के मुखिया ने प्यार से बच्चे को बुलाकर अपने गोद में बिठाया और पूछा क्या कहना चाहते हो बेटा। बच्चा अपनी तोतली ज़ुबान में बताता है कि: एक दिन मुधे प्यात लदी ती, अम्मा ने मुधे पानी पिलाया ता औल तहा था दब बी प्यात लदे मेले घल ते मतके ते पी लिया तलना। दोपहल में मा बाबा बदार दये ते तो अम्मा के गल ते पीने दया ता, लेतिन वहाँ बैदू ताता खले थे औल अम्मा के बालती से पानी निताल ले दये ।औल मुधे देख ते भाग दये।
पंचायत ने लोहार को पकड़ बुलवाया और इस मुद्दे पर फटकार लगाई। चोरी का कारण पूछने पर पता चला कि लोहार की पारिवारिक जनसंख्या सबसे ज्यादा है और उस मुताबिक पानी की समस्या उत्पन्न हुई और बच्चों ने पानी का बूंद तक नहीं पिया था तो मैं विवश होकर यह कुकृत्य किया, चूंकि अम्मा के घर आसानी से जल प्राप्त हो गया और किसी को पता भी नहीं चल पाया। लेकिन इस पाप का ऊपर वाली साक्षी है उसने इसे उजागर किया। पंचायत जो भी सजा दे मैं तैयार हूँ। ये सब सुनकर पंचायत ने कहा अम्मा ने तो पानी की किल्लत के बावजूद नन्हें बच्चे के लिए अपने घर का द्वार खोल रखा था। परन्तु बच्चों के लिए ही बैजू ने ऐसा किया। पंचायत ने सबको आगाह किया और मिलजुलकर एक दूसरे का सहयोग देने का सुझाव दिया जिससे आगे से ऐसा ना हो और बैजू लोहार को अम्मा के पानी भरने के बारी में अम्मा के बर्तनों में पानी ला के भरने की जिम्मेदारी सजा के तौर पर मुकर्रर की। बैजू ने अम्मा के हाथ जोड़े और पानी लाकर भरने का वायदा भी किया। वृद्धा ने भी माफ किया और भविष्य में पानी की समस्या उत्पन्न होने पर उसकी सहायता करने का आश्वासन दिया और चोरी ना करने की नसीहत भी दी। पंचायत समाप्त होती है और सभी हँसी खुशी अपने घर चले जाते हैं।