बंदरों से मेरा द्वंद्व Abhishek Pandey
बंदरों से मेरा द्वंद्व
बंदरों से मेरी तीखी नोक झोकों के बारे में
बंदरों से मेरा द्वंद्व बचपन से ही होता आ रहा है। कोई बड़ी लड़ाई तो अभी तक हुई नहीं पर छुटपुट मुठभेड़ें लगभग रोज़ होती ही रहती थीं। इस वैमनस्यता की शुरुआत कहाँ से हुई, ये बताता हूँ अब। बचपन में मैं अपनी छत पर खेल कूद कर रहा था, तभी एक नन्हा सा बन्दर वहाँ आ गया, मैंने एक छोटा सा पत्थर उठाकर उसे मार दिया, पत्थर उसे लगा तो बहुत ही धीरे होगा पर वो चीखते चिल्लाते अपने वानर सेनापति को सूचित करने चला गया और कुछ ही देर में वानरों की एक विशाल सेना ने मुझे चारों ओर से घेर लिया। मैंने उनके सेनापति को स्थिति समझाने की बहुत चेष्टा की पर सब व्यर्थ गया। वह वानर सेनापति अपने पुत्रवत वानर के साथ हुए दुर्व्यवहार से इतना दुखी था कि उसने मेरी एक न सुनी और अपनी सेना को मुझ पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जब बातचीत से बात ना सुलझी तो मैंने सोचा अब आत्मसमर्पण में ही भलाई है, मैंने उस विशाल वानर सेना के सामने हथियार डाल दिए, वानर सेनापति ने यह वचन लेकर कि अब मैं कभी किसी भी वानर पर शस्त्र नहीं उठाऊँगा, मुझे छोड़ दिया। पर मैं उस दिन अपमान का घूँट पीकर रह गया। मैं इस धरती की सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली प्रजाति इन तुच्छ बंदरों के सम्मुख कैसे हार गया, यह टीस रह रहकर मुझे परेशान कर रही थी। अतः मैंने अब अपने अपमान का बदला लेने का निश्चय किया। सबसे पहले मैंने बंदरों के आक्रमण से बचने हेतु अपने घर, जो कि मेरा दुर्ग था, को सुदृढ़ करने का प्रयास आरम्भ किया। सेना में केवल मैं ही था, मैं ही सेनापति था और मैं ही सैनिक भी था। पर विशाल वानर सेना से युद्ध हेतु मुझे और भी सैनिकों की आवश्यकता थी, अतः मैं मनुष्यों के पास सहायता हेतु गया पर कोई भी मेरी सेना में शामिल होने हेतु तैयार नहीं हुआ। तभी मैंने सोचा मानव न सही किसी अन्य प्रजाति से सहायता माँगी जाए। तभी मन में विचार आया कुत्ते, बंदरों के जन्मजात शत्रु हैं। मैं तुरंत अपने गाँव जाकर एक मोटे ताजे कुत्ते से मिला जो कि कुत्तों का सरदार था, और उससे दो कुत्ते ले आया। मेरी बढ़ती सैन्य शक्ति का पता उधर बंदरों के सरदार को भी चल गया, और उसे यह भी एक दूत बन्दर से पता चला कि मैं बंदरों पर आक्रमण हेतु ही सब तैयारी कर रहा हूँ। वानर सेनापति बुद्धिमान था उसने मेरी तैयारियाँ पूरी होने से पहले ही एक विशाल सेना के साथ मेरे दुर्ग (घर) पर धावा बोल दिया।आनन फानन में आक्रमण की सूचना मिली तो मैंने घर के द्वार चारों ओर से बंद कर लिए और अपने दो कुत्तों को दो खिड़कियों में तैनात कर दिया। युद्ध शुरू हुआ, पहले दिन काफ़ी बन्दर हमारे वीर कुत्तों के द्वारा लहूलुहान किए गए, हमारे कुत्तों को भी काफ़ी चोट आई। सूर्यास्त होते-होते युद्ध विराम की घोषणा की गई। अगले दिन फिर मार काट मच गई, और ये खूनखराबा चलते-चलते पाँच दिन हो गए। मेरे दुर्ग के अंदर का खाना पीना समाप्त होने लगा, और बाहर पूरी वानर सेना दुर्ग पर घेरा डाले बैठी थी। मैंने सन्धि की योजना बनाई और एक कुत्ते को दूत बनाकर वानर सरदार के पास भेजा। मैंने सन्धि पत्र में लिखा कि यदि आप अपना घेरा दुर्ग से हटा लें तो मैं अब कभी भी आप पर आक्रमण नहीं करुँगा और आपकी ओर से भी शांति स्थापना का वचन चाहता हूँ। वानर सरदार ने काफ़ी विचार विमर्श के बाद स्वीकृति दी। मेरा दूत वापस आया, सन्धि स्वीकृत हो गई। तब से लेकर आज तक वही सन्धि दोनों पक्षों द्वारा अमल में लाई जा रही है। अब बंदरों से मेरा द्वन्द समाप्त हो गया है और अब जब भी मैं अपने दुर्ग से बाहर जाता हूँ, वो अनापेक्षित तरीके से मेरा मार्ग स्वयं खाली कर देते हैं।