अधूरा सपना
कुछ रोज़ बीते मुझे एक अधूरा सपना नज़र आया
एक फूल और तितली पर
कुछ भौंरो ने अपना कहर बरपाया,
संकीर्णता उनकी मानसिकता में
साफ़ -साफ़ झलक रही थी
आँखों में उनकी तेज जलती आग धधक रही थी,
मै उस सपने को पूरा कर ना पाया
कुछ रोज़ बीते मुझे एक अधूरा सपना नज़र आया |
अगली सुबह मुझे मेरा सपना खबरों में सुनने मे आया
मेरी एक बहन और आपकी एक बेटी को
कुछ दरिंदो ने अपनी हवस का शिकार बनाया
उसका दर्द, उसका दर्द
कोई ना महसूस कर पाया,
वो लड़ी मौत से भी
पर कोई उसे बचाने को आगे ना आया,
वो रोई, वो चिल्लाई
सबसे पुरानी सभ्यता आज फिर शर्माई |
क्यूँ हुआ उसका दमन ?
उसके भी कुछ सपने होंगे
उसकी भी कुछ यादें होंगी,
क्यूँ उसने जीने का अधिकार ना पाया?
कुछ रोज़ बीते मुझे एक अधूरा सपना नज़र आया |
सुनता हूँ जब किसी को अब कहते हुए
मेरा भारत महान, मेरा भारत महान
लज्जा आती है ,मुझे खुद पर उस पर
हम सभी पर जो सब कुछ जान कर भी हैं अंजान,
हम जानते हैं सच्चाई को
दिल धड़कता है हमारा भी
हमारे सीनों में भी दर्द होता है
जब कोई अपना ,अपने आँसुओं से अपना दामन भिगोता है,
जब कोई 'निर्भया' गिड़गिड़ाती है
तो क्यों हमें उसमें अपनी बहन नजऱ नही आती है,
क्यों हम इतने स्वार्थी हो गए हैं ?
क्यों भूलते जा रहे हैं
अपनी सभ्यता और संस्कृति को?
क्यों विलग हो गए हैं अपनो से ही?
क्या हमारा दायित्व नहीं है
किसी रोते हुए के आँसू पोंछने का,
किसी गिरते हुए को फिर से उठा देने का?
अभी भी समय है, अभी भी समय है
जागो! जागो!
कहीं ऐसा ना हो कि सभी सो जाएं
और मेरा भारत,हमारा भारत हम सबका भारत
संकीर्ण सोच और गुलाम मानसिकता के अधीन हो जाए |
कुछ रोज़ बीते मुझे फिर से एक अधूरा सपना नज़र आया
खुले विस्तरित नीले गगन तले
वो मुरझाया हुआ फूल फिर से मुस्कुराया,
उसका त्याग, तप, तेज, बल,
इस उपवन के काम मे आया |
अगली सुबह मैने मेरा सपना जन चेतना में पाया
सबके मानस पटल पर छाया उस तितली का साया,
उसके दमन को सबने अपना दमन बताया
उसके दर्द से देश मेरा परिचित हो पाया
उसकी शहादत ने ऐसा सुदर्शन चक्र चलाया
कि सोता वतन जाग गया और न्याय उसे दिलाया|
फिर स्वतंत्रता बढी विचारों की
संकीर्णता भी मिट गई
और हम सबने मिलकर
उसके सपनो का हिंद बनाया |
कुछ रोज़ बीते मुझे एक अधूरा सपना नज़र आया ||