उड़ते चले हम
उड़ते चले हम मंज़िल की ओर,
बिना थामे किसी के हाथ की डोर
ठान ले अगर मंज़िल की आस
रेगिस्तान मे भी बुझेगी प्यास ।...
उड़ते चले हम मंज़िल की ओर
बिना रुके , बिना थके ...........
कठनाइयों को करके दूर ,
परेशानियों को करके चूर,
बढ़ाये जाओ आपने कदम
मंज़िल की ओर,
बाँध सिर से निडरता की डोर ।
उड़ते चले हम मंज़िल की ओर...
उड़ते चले हम मंज़िल की ओर......।