ढलान
"बहुत दर्द होता है बच्चे"
कँपकँपाता बोला वो मुरझाता फूल;
पीले पत्ते सूखी डाली,
ढुलक उठा कोई ओस शूल।
पीर कहें क्या मन की
रूठते शब्द, रूठता अँधेरा भी,
थर्राते, लडखड़ाते पुकार लगाते
तू ही तो इक बचा साथी।
क्षण-क्षण ढलता उनका ओज
उत्सुक करने अनंत में शयन,
झूठी आशा में नभ से बाँधे
चलते दो धुँधले नयन।
दुआ से जिनके रींझे बीज
मुस्कान से जिनके सिञ्चे क्यार,
सम्भल उठ खिल उठेंगे
चहिये क्या - तनिक सा प्यार।
तेरे नाम जिनकी चले नैया
दे न सका तू उतना भर,
क्या ईश्वर, क्या ही मानुष
खुद से अब लगता है डर।
खाँसती, खोजती मकसद
खुद से बाँधती निराशा को,
इक दिन क्या मैं भी
छोड़ दूँगा अपनी माँ को?