कहानी

कहानी - क्या है ये कहानी?
कहानी - जो हम पढ़ते हैं किताबों और अखबारों में,
जो कभी परियों और ख़ुशियों के मकान
जो बनते हैं बादलों के पास -
उनकी सैर कराए,
या कभी हमें खुद को भूलने पे मजबूर कर,
उड़ाए दूसरों की दुनिया के बीच,
उनकी बीती और उनके नज़रिये की तश्तरी में।
 

पर इन किताबों से परे -
मेरी कुर्सी की भी एक कहानी है -
कभी 150 किलो की तशरीफ़ ने
उसको तकलीफ़ दी थी,
कभी 8 किलो की बच्ची उसपर उछलकर
उसको भीनी हँसी दे गई थी।
मेरे बल्ब की भी एक कहानी है -
कि कुछ विद्युतीय और चुम्बकीय सा मिलके
उसे घण्टों तक उबालता फिरता है।
 

कहानी हर जगह है; कहानी हर कहीं है,
तथ्यात्मक, व्यंग्यात्मक, ऐतिहासिक, भावनात्मक।
हर कण, हर किरण; हर लहर और हर शहर
अपनी एक कहानी कहता है;
यहाँ तक कि आपके पास की दुकानवाली,
आपका मैकेनिक, दफ्तर के वर्मा जी,
गेंद से चाँद को ढँकता छोटा डब्बू -
हर कोई एक चलती-फिरती कहानी है।
 

तो जब भी मैं कहीं जाता हूँ,
अपने पास से गुज़रते हर शख्स में,
एक कहानी ढूँढने की कोशिश करता हूँ।
उसके माथे की शिकन में, चेहरे के साँवलेपन में,
मुझे हज़ारों क़िस्से दबे नज़र आते हैं।
अपने हर एक दोस्त की कही अनकही,
या औरतों और आदमियों की चलती बातें,
बड़े गौर से सुनता हूँ -
कि क्या पता मुझे कोई कहानी मिल जाए,
जिसे पन्ने पर उतार,
मैं अपनी कहानी दो घड़ी भुला सकूँ।
 

कभी तो ज़हन में कुछ यूँ ख़याल आते हैं,
कि मेरी ज़िन्दगी एक चलचित्र है -
कि मेरे चारों ओर छिपे कैमरे,
मेरी कहानी किसी रूपहले पर्दे पर
दिखलाने की कोशिश में खोए हैं।
कभी तो ऐसा भी लगता है -
मेरे पास का हर इंसान,
मेरी कहानी लिखने में मशगूल है।
 

यहाँ तक कि मैं जो भी कहता,
मैं जो भी करता हूँ,
सिर्फ़ अपनी दास्ताँ को ही आगे नहीं बढ़ाता,
बल्कि दूसरों की कहानियों के भी पन्ने भरता हूँ।
तो मेरी आजकल अक्सर ये कोशिश रहती है,
कि लोग जब अपनी किताब के पन्ने
पीछे पलटकर देखें,
तो ज़िन्दगी के किसी
खुशनुमा चैपटर में ही मेरा ज़िक्र पाएँ,
कि चंद लम्हें उनकी आँखों की
चमकान और होठों की मुस्कान
की मैं वजह बन जाऊँ।।

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