कौन ?

भटके हुए मुसाफिरों को मंज़िल कौन दिखाएगा
जब कश्तियाँ ही साहिलों से अन्जान रहने लगे ।
 

इन आँखों को नम होना कौन सिखाएगा
जब पलकें ही आँसुओं से अन्जान रहने लगे ।
 

खुले आसमान में उड़ना कौन सिखाएगा
जब परिंदे ही परों से अन्जान रहने लगे ।
 

गिरे हुए शब्दों को उठना कौन सिखाएगा
जब लेखनी ही अछरों से अन्जान रहने लगे ।
 

इन अँधेरे रास्तों को रौशनी कौन दिखाएगा
जब लौं ही चिरागों से अन्जान रहने लगे ।
 

लोगो को खुद से मिलना कौन सिखाएगा
जब मन ही शरीर से अन्जान रहने लगे ।
 

हमें झुककर सलाम करना कौन सिखाएगा
जब बच्चे ही बुजुर्गों से अन्जान रहने लगे ।
 

शहरों में मिट्टी खाना कौन सिखाएगा
जब बच्चे ही ज़मीन से अन्जान रहने लगे ।
 

अब खुदा की इबादत करना कौन सिखाएगा
जब नमाज़ी ही सज़दे से अन्जान रहने लगे ।
 

इन मूर्तियों में जान डालना कौन सिखाएगा
जब भगवान ही पत्थरों से अन्जान रहने लगे ।
 

जिंदगी में मिठास की अनुभूति कौन कराएगा
जब भौंरे ही फूलों से अन्जान रहने लगे ।
 

हमें मदमस्त होकर झूमना कौन सिखाएगा
जब शिव ही तांडव से अन्जान रहने लगे ।
 

अधूरे ज़ाम को मस्ती से छलकना कौन सिखाएगा
जब प्याले ही शराब से अन्जान रहने लगे ।
 

इन ख़ामोशियों को गुनगुनाना कौन सिखाएगा
जब लब्ज़ ही जुबाँ से अन्जान रहने लगे ।
 

हमें सलीक़े से कब्र तक कौन पहुँचाएगा
जब कफ़न ही लाशों से अन्जान रहने लगे ।

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