आया सावन, बीत गया! शुभम त्रिपाठी
आया सावन, बीत गया!
शुभम त्रिपाठीदेखो साजन!
आया सावन, बीत गया!
मानो,
यह जीवन पूरा बीत गया!
जो न आए तुम मीत मेरे,
हुए न बागों में फेरे।
मेघ-रुदन!
दहकाता उर में,
विरह-अग्नि की पीड़ा!
यूँ पूरा सावन विरहित बीता!
पड़ी वो सूखी नीम की डालें,
झूले जिनपर पड़ते थे।
मैं झूलूँ या तू झूले?
इस बात पर दोनों लड़ते थे।
कुछ बादल बूँदें बन जब,
थे गिरते तेरे दामन में;
तन-मन संग दोनों के भीगे,
इस प्रीति-प्यासे सावन में।
पर,
न तुम आए,
न रंग आए।
जीने का,
हर भ्रम अब टूट गया,
साजन!
आया सावन, बीत गया!
बीते सावन की स्मृतियों में,
कवि का पूरा जीवन विरहित बीता!
कवि-जीवन विरहाकुल बीता!
देखो साजन!
आया सावन, बीत गया!
तू ना आया।
क्यों रूठ गया?