वो उस दिन  Himanshu Chugh

वो उस दिन

Himanshu Chugh

वो उस दिन भी इतनी सुंदर थी,
वो आज भी उतनी सुन्दर है।
मैं उस दिन भी उस पे मरता था,
मैं आज भी उस पे मरता हूँ।
 

भोला-भाला सा था मैं,
मंद मुस्कान के साथ चला जा रहा था मैं।
वो सामने खड़ी थी,
उसे देखते ही मेरी नजर सिर्फ उसी पर अड़ी थी।
 

मन तो खूब किया कि
यहीं से आगाज़ कर दूँ।
नमस्कार-प्रणाम की क्या ज़रुरत है,
सीधे प्यार क इज़हार कर दूँ।
 

पर ना जाने किस कोने से
एक आवाज आई,
मेरे पहले से लाल गालों को
और लाल होने की चिंता सताई।
 

उसकी आंखों में थी गहराई
और साथ ही शून्यता।
सौंदर्य प्रसाधन के इस्तेमाल से ही सही,
उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर था।
 

काश मेरे ताक-ने और उसके देख कर भी
अन-देखा करने का यह सिलसिला
हमेशा जारी रहता,
लेकिन द्वार पर खड़ी पुलिस को यह कहाँ मंज़ूर था।
 

घर पहुँच कर मुझे याद फिर उसकी आई,
दोस्तों से कह कर कुंडली मैंने निकलवाई।
पता चला वह किसी एक की पसंद नहीं,
उस पर मरने वाले चंद नहीं।
जो कभी होगा भी या नहीं वह किस्सा हूँ मैं,
लंबी सूची का छोटा सा हिस्सा हूँ मैं।
 

उसकी पायल की खन-खन पर थिरकती है आवाम,
उसे एक खरोंच आए तो निकलती है सैकड़ों की जान।
वो बड़े महलों की शहज़ादी,
मैं मानो गाँव का ग्वाला।
उस पर मरती दुनिया सारी,
मैं लड़का भोला-भाला।
 

मेरा उस का पीछा करना
और उसका मुझे नज़रअंदाज़ करना
एक रोज की ही कहानी थी
पर इतनी आसानी से वह कहाँ हाथ आने वाली थी।
 

सब दोस्तों की सलाह से,
मन में पैदा हुए विश्वास से,
रखकर एक बहुत बड़ी आस,
पहुँच खड़ा हुआ मैं उसके पास।
मेरे ख्वाबों की मल्लिका है तू,
मेरे दिल पर लगे है ताले की चाबी है तू।
 

हर सवाल का जवाब हाँ नहीं होता,
हर प्रेम कहानी का अंत ख़ुशनुमा नहीं होता।
हे राम! यह क्या हो गया?
दो दिलों के मिलन से पहले मेरे गाल और उसके हाथ का मिलन हो गया।
 

अगले दिन फिर दोस्तों को बुलाया गया,
उन्हें डाँटने के लिए संवाद तैयार किए गए।
लेकिन वे तो और भी ज्यादा ज़ालिम निकले,
ना डाँट खाई ना माफी मांगी,
बस मधुशाला का रास्ता बता निकल लिए।

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