मेरे बचपन तुम यूँ ही ठहर जाओ संजय साहू
मेरे बचपन तुम यूँ ही ठहर जाओ
संजय साहूनिर्मल-चंचल नटखट कितना प्यारा,
अपनी मस्ती से लगता जग न्यारा|
न मन में कोई राग, न है कोई द्वेष,
प्रेम भाव से सब मिलें, न देखूँ कहीं क्लेश|
न कुछ पाने की है होड़, न कुछ खोने का है भय,
संताेष भरा यह बचपन, लागे कितना आनंदमय|
निर्मल-चंचल नटखट कितना प्यारा,
अपनी मस्ती से लगता जग न्यारा||