किसान होता परेशान  संजय साहू

किसान होता परेशान

संजय साहू

हर अन्नदाता अब राे -रो यह गीत सुनाता,
फिर भी दिल की बातें कोई समझ न पाता।
 

कड़ी धूप में मेहनत करके फसल उगाता,
पकी फसल पर माैसम अपना कहर बरसाता।
 

ज्यों-त्यों गिरते संभलते कुछ फसल बचाता,
बाज़ार की मंदी मैं अपना सर्वस्व गँवाता।
 

क्रेडिट कार्ड का कर्जा प्रतिदिन बढता जाता,
एेसे हालातों से लड़कर वाे नित मरता जाता।
 

काेई न ऐसा अन्तर बनाता जिससे वाे बच पाता,
फिर भी वाे फसल उगाकर सबकी भूख मिटाता।
 

बहरी सियासत को कुछ सुनाई नहीं आता,
कैसे कोई नित प्रतिदिन अपना सर्वस्व लुटाता।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1547
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com