किसान होता परेशान संजय साहू
किसान होता परेशान
संजय साहूहर अन्नदाता अब राे -रो यह गीत सुनाता,
फिर भी दिल की बातें कोई समझ न पाता।
कड़ी धूप में मेहनत करके फसल उगाता,
पकी फसल पर माैसम अपना कहर बरसाता।
ज्यों-त्यों गिरते संभलते कुछ फसल बचाता,
बाज़ार की मंदी मैं अपना सर्वस्व गँवाता।
क्रेडिट कार्ड का कर्जा प्रतिदिन बढता जाता,
एेसे हालातों से लड़कर वाे नित मरता जाता।
काेई न ऐसा अन्तर बनाता जिससे वाे बच पाता,
फिर भी वाे फसल उगाकर सबकी भूख मिटाता।
बहरी सियासत को कुछ सुनाई नहीं आता,
कैसे कोई नित प्रतिदिन अपना सर्वस्व लुटाता।
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आज के समय में हमारा किसान अत्यधिक परेशानी में है, किसान अपनी पूरी मेहनत करके दिन रात धूप बारिश में काम करके फसल उगाता है फिर फसल आने पर मौसम अपने कहर सेे सारी फसल उजाड़ देता हैै, इस सबसे बचने के बाद जो फसल बच जाती है बो बाजार में भाव ना होने के कारण किसान अपनी लागत भी नहीं बना पाता और कर्ज के बोझ तले दबता जाता है और किसानों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जाती है,और कोई सियासत इस ओर अपना ध्यान नहीं देती।