सोचा वतन की परिभाषा लिखूँ Praveen Kumar
सोचा वतन की परिभाषा लिखूँ
Praveen Kumarसोचा वतन की परिभाषा लिखूँ,
या अपने दिल की अभिलाषा लिखूँ।
बढ़े जिससे देश हर कदम पर
वो हर कर्तव्य हमारा लिखूँ।।
मोहब्बत का इशारा लिखूँ,
सब मे भाईचारा लिखूँ।
मेरी तम्मना तो बस यही है,
दीपक का द्वारा लिखूँ या रोशनी का सितारा लिखूँ।।
सोचा वतन की परिभाषा लिखूँ
या अपने दिल की अभिलाषा लिखूँ।
गंगा की बहती धारा लिखूँ,
या फहराता तिरंगा प्यारा लिखूँ।
सारी दुनिया से प्यारा लिखूँ,
वो हिंदुस्तान हमारा लिखूँ।।
मेरी इन आँखों से बहती,
उन अश्कों की धारा लिखूँ।
या वतन पर शहीद हुए जवानों,
ये उपकार तुम्हारा लिखूँ।।
सोचा वतन की परिभाषा लिखूँ
या अपने दिल की अभिलाषा लिखूँ।
इतना सोचा प्यार से मैंने,
अब सोचने की तरकीब बदल दूँ।
अपने निजी विचारों को,
तुम्हारे सम्मुख प्रकट कर दूँ।
मोहब्बत से जो तुम हाथ बढ़ाओ,
तो हाथ तुम्हारे थाम के रख दूँ।
ओर बाज न आए ये देश के दुश्मन,
तो तुम्हे में चीर के रख दूँ।।
सोचा वतन की परिभाषा लिखूँ
या अपने दिल की अभिलाषा लिखूँ।
ओर अंत मे जाते-जाते,
इस देश के उपकार को लिखूँ।
भारत माता की जय कहकर
इस शेर की हुँकार को लिखूँ।।
जय हिन्द। जय भारत।