स्वदेश का आह्वान  KUMAR SAURABH PRAVEEN

स्वदेश का आह्वान

KUMAR SAURABH PRAVEEN

कृपा-पात्र हैं हम सब उनके
जिसने निज हित त्याग दिया,
राष्ट्र-भक्ति को सर्वस्व मानकर
भारत माँ का कल्याण किया ||१||


जो, देश-दशा-दिशा को समझे
सेवा का जिसने दान दिया,
मानो वह मनुज नहीं ईश्वर है
जिसने स्वदेश को मान दिया ||२||


निज कुटुंब नहीं जिसने पूरी
वसुधा को ही कुटुंब मान लिया,
समझो वह सजग मानव ही
वसुधा का भी कल्याण किया ||३||


बनी हवन-कुंड है स्वराष्ट्र की
जो राष्ट्र-प्रेम की आहुति दिया,
सदियों तक अमर हुआ है वो
जिसने अपना बलिदान दिया ||४||


यह रण-भेरी है, शंखनाद है
देशभक्ति का जल रहा दीया,
भारत माँ के गौरव की खातिर
हमने भी अब यह ठान लिया ||५||


आधुनिकता की नींव पर रखेंगे
प्राचीनता की विरासत,
अब दुनिया फिर से देखेगी
भारत माँ की यह नव-ताकत ||६||

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