बिखरे मोती  मुस्कान चाँदनी

बिखरे मोती

मुस्कान चाँदनी

धागों में पिरोकर रखे थे
हम अपने सपनों को
मोती के रूप में,
एक-एक कर सजाया हमने
सपनों के मोतियों को।
तब जाकर बन सकी थी
मेरे सपनों की माला।
वह समय आ ही गया
जिसका सदियों से इंतज़ार
कर रहे थे मेरे नैना
माला के पूरा होने का,
मन सोचकर उत्साहित था
कल होगी मेरे पास
वह सुनहरी ख्वाबों की माला।
अचानक छूट गयी माला
मेरे हाथों से,
बिखर गए मोती
एक-एक कर
जिस तरह हमने सजाए थे।
बहा था आँसू भी आँखों से
टपक पड़ा था लहू का कतरा कतरा
हुआ जज़्बातों पर भी पहरा।
पिरोना चाहा फिर से
सपनों को मोती के रूप में,
इस बार धागे ही न मिले
हमेशा धोखा देती रही है
मेरी किस्मत।
जब पूरे होने लगते हैं मेरे सपने
क्यों बिखर जाते हैं
मोती के जैसे धागों से।

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