ज़र्रा (मिट्टी का कण) SATISH KUMAR AGARWAL
ज़र्रा (मिट्टी का कण)
SATISH KUMAR AGARWALमैं तो सिर्फ एक ज़र्रा हूँ,
पाँव के नीचे रौंदे जाने के लिए,
पर अगर वो पाँव आपके होते,
तो मेरा रौंदा जाना भी सफ़ल हो जाता।
इसी सफलता की उम्मीद लिए,
मैं कितनी सदियों से पड़ा हूँ यहाँ,
देखिए कब वो इस रास्ते पे आतें हैं,
मुझे देखते भी हैं, या रौंदे बिना,
यूहीं निकल जाते हैं।
वैसे फैसला आने से पहले, नाउम्मीद होना,
यह मेरी फ़ितरत नहीं है,
वर्ना यूहीं सदियों से पड़े रहना,
कोई आसान काम नहीं है।