स्वप्न-दहन  Kumar Sonal

स्वप्न-दहन

Kumar Sonal

होलिका-दहन की लपटें देख, आज माँ तेरी याद आई है,
मैं सो जाऊँ छोड़, सारी रस्में, दिल से फरियाद आयी है।
 

''भैया नहीं जी लग रहा है अब'', ये कहती मुझसे बहन है,
मैं ये मानूँ कैसे, कि खुशियों का, ये पर्व होलिका-दहन है।
 

आज आँखों तक वो आई है, दिल में जज्बात जो कल तक था,
उतर गया चोला मुस्कान का, होंठो पर जो मेरे अब तक था।
 

खुशियाँ बैठी इक ओर हैं, और गम बैठें इक ओर हैं,
जमाना डूबा है जश्न में, और हम बैठें इक ओर हैं।
 

जश्न करो, सब दुःख भुला, कहता जमाना मुझसे है,
पर नहीं समझता कोई ये, मेरा जश्न सारा तुझसे है।

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